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समय चक्र

समय नहीं रुकता इक पल भी, 

जैसे रेत फिसलती जाए। 
वक्त नहीं है सखा किसी का, 
बीता वक्त न लौट के आए।

इक मौक़ा सबको मिलता है, 
करले कदर वही खिलता है, 
कभी सितारा गिरे टूटकर, 
कभी चमक दुगनी हो जाए।

कभी लगे मंजिल का मसका,
कभी आसमां से ला पटका,
कभी थाम लेता गिरते को,
कभी मुकद्दर आँख दिखाए।

समय चक्र के फेर में पड़ कर,
गिरगिट जैसे रंग बदल कर,
कभी खड़ा है हाथ जोड़ कर,
कभी गुमान छलकता जाए।

कभी समय की शह से फूले,
कभी मात के झूला झूले,
चले कभी परछाई बनकर,
“श्री” सरपट गायब हो जाए।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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9 Comments

Sushi saxena

14-Feb-2024 05:08 PM

V nice

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Mohammed urooj khan

12-Feb-2024 02:05 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

10-Feb-2024 11:43 PM

👏👌

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